दिल्ली दरबार में दारा सिंह चौहान, क्या तिसरी बार मौका देगी बीजेपी
दिल्ली दरबार में दारा सिंह चौहान, क्या तिसरी बार मौका देगी बीजेपी
राजनीति में एक चीज तो तय है कि कुछ भी अस्थाई नहीं है। कब कौन किसके संगे और कब कौन किसके विरोध खड़ा है कुछ कहा नहीं जा सकता समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर 2022 में घोसी सीट से निर्वाचित हुए दारा सिंह चौहान ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में घर वापसी की तो इसे पूर्वांचल की सियासत में मास्टर स्ट्रोक तक कहा जाने लगा. बीजेपी ने भी घोसी उपचुनाव में बड़ी जीत की उम्मीदों के साथ दारा पर ही दांव लगा दिया जो हार के साथ टूट चुकी हैं।
घोसी के नतीजे के बाद दारा सिंह चौहान बीते दिन दिल्ली पहुंचकर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष से मुलाकात की. पार्टी के इन नेताओं के साथ दारा की मुलाकात में क्या बाते हुई? इसे लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है लेकिन कहा जा रहा है कि दारा ने घोसी की हार का स्पष्टीकरण दिया है। खास बात यह रही की जेपी नड्डा हो, या बीएल संतोष दोनों ही दारा को भविष्य की सियासत को लेकर किसी तरह का कोई आश्वासन दिया है.दारा सिंह चौहान के करीबियों की मानें तो उम्मीद है कि घोसी की हार के बावजूद पार्टी उन्हें वापस ला सकती है। और यही वजह है कि दारा अपना सियासी भविष्य टटोलने के लिए दिल्ली तक पहुंच चुकें हैं. दारा दिल्ली पहुंचे हैं तो विधान परिषद सीट से उच्च सदन में भेजे जाने की अटकलों को भी हवा मिल गया है। ओमप्रकाश राजभर ने घोसी उपचुनाव के नतीजों के बाद दावा किया था कि दारा, मैं और दोनों ही मंत्री बनेंगे. हार के बाद दारा के मंत्री बनने की राह विधान परिषद से ही निकलती है और राजनितिक जानकारों की मानें तो दारा के दिल्ली दौरा विधान परिषद सीट हासिल करने की कोशिश
बीजेपी के हवाले से ही ये बात सामने आई है कि दारा सिंह चौहान के भविष्य को लेकर फैसला दिल्ली दरबार में ही होगा. अब देखना है कि दारा सिंह चौहान की जब पार्टी में वापसी हुई, तब स्टेट यूनिट की सहमति थी या नहीं. कहा तो यहां तक जाता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी दारा की वापसी के लिए ना बोला था लेकिन फिर भी जातिगत और तमाम समीकरणों को देखते हुए उन्हें पार्टी में वापसी कराई गई. दारा को दूसरा मौका दिया गया दूसरा मौका इसलिए, क्योंकि 2014 लोकसभा चुनाव के बाद दारा जब बीजेपी में शामिल हुए थे तब पार्टी ने उन्हें पिछड़ा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था. दूसरी बार जब वे पिछले दिनों पार्टी में लौटे तब उनको उसी घोसी सीट से उम्मीदवार बनाया गया जो सीट उनके इस्तीफे से रिक्त हुई थी. दारा की हार को लेकर ये भी कहा जा रहा है कि बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने भी उन्हें स्वीकार नहीं किया. चौहान वोट भी उन्हें मिले नहीं. अभी जिस तरह की परिस्थितियां बन गई हैं, बीजेपी नेतृत्व के लिए दारा को थर्ड चांस दे पाना चुनौतीपूर्ण होगा.
दिनेश की सीट से दारा की दावेदारी कमजोर क्यों
डॉक्टर दिनेश शर्मा के राज्यसभा जाने के बाद रिक्त हुई एमएलसी सीट से दारा की दावेदारी कमजोर होने के कई कारण हैं. इस सीट से जो निर्वाचित होगा उसका कार्यकाल जनवरी 2027 तक होगा.वहीं दारा के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए बीजेपी के लिए उन पर भरोसा कर पाना मुश्किल होगा. बीजेपी के कई नेता किसी पुराने कार्यकर्ता को इस सीट से उच्च सदन में भेजे जाने के पक्ष में हैं. दारा को अगर चौहान बेल्ट में भी वोट मिले होते तो हार के बावजूद जातीय वोटों की मजबूरी में बीजेपी विचार कर सकती थी. चौहान बहुल इलाकों में भी सपा आगे रही और दारा को प्रचार के दौरान भारी विरोध का भी सामना करना पड़ा.|