पंजाब में पिछले 5 से 6 साल के दौरान शिरोमणि अकाली दल जालंधर में काफी कमजोर साबित हुआ है। विधानसभा चुनाव 2017 से पहले और उसके बाद बड़ी तादाद में अकाली कार्यकर्ता अन्य दलों में शामिल हुए। हालांकि अकाली विचारधारा से प्रभावित कार्यकर्ता दूसरे राजनीतिक दलों में घुटन महसूस करते रहे हैं और वापसी का रास्ता भी देखते रहे हैं।
शिरोमणि अकाली दल में सीनियर नेता गुरचरण सिंह चन्नी की वापसी के बाद पार्टी में नए सिरे से ध्रुवीकरण हो रहा है। पार्टी के कई सीनियर नेता अब चन्नी से जुड़ने लगे हैं तो वहीं दूसरे राजनीतिक दलों में शामिल हो चुके कार्यकर्ता पार्टी में वापसी की भी तैयारी कर रहे हैं।
शिरोमणि अकाली दल में सीनियर नेता गुरचरण सिंह चन्नी की वापसी के बाद पार्टी में नए सिरे से ध्रुवीकरण हो रहा है। पार्टी के कई सीनियर नेता अब चन्नी से जुड़ने लगे हैं तो वहीं दूसरे राजनीतिक दलों में शामिल हो चुके कार्यकर्ता पार्टी में वापसी की भी तैयारी कर रहे हैं।
बड़ी गिनती में नेता और कार्यकर्ता वापसी को तैयार
पिछले 5 से 6 साल के दौरान शिरोमणि अकाली दल जालंधर में काफी कमजोर साबित हुआ है। विधानसभा चुनाव 2017 से पहले और उसके बाद बड़ी तादाद में अकाली कार्यकर्ता अन्य दलों में शामिल हुए। हालांकि अकाली विचारधारा से प्रभावित कार्यकर्ता दूसरे राजनीतिक दलों में घुटन महसूस करते रहे हैं और वापसी का रास्ता भी देखते रहे हैं, लेकिन अब जब जालंधर इकाई के प्रधान रहे प्लानिंग बोर्ड के पूर्व चेयरमैन गुरचरण सिंह चन्नी की पार्टी में वापस आ गए हैं तो बड़ी गिनती में नेता और कार्यकर्ता भी वापसी की तैयारी में हैं।
आगामी नगर निगम चुनाव में बड़ी गिनती में उम्मीदवारों की जरूरत रहेगी। अगर चन्नी कार्यकर्ताओं की वापसी करवा लेते हैँ तो पार्टी का आधार मजबूत होगा और उम्मीदवारों की तलाश भी पूरी हो जाएगी।
चन्नी की वापसी से सीनियर नेताओं को भी राहत
गुरचरण सिंह चन्नी की शिरोमणि अकाली दल में वापसी से पार्टी के सीनियर नेताओं को भी राहत मिली है। चन्नी चुनावी महिम चलाने और कार्यकर्ताओं को साथ जोड़ने में माहिर माने जाते हैं। ऐसे में विभिन्न विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले नेताओं को राहत है क्योंकि चन्नी के पास संगठन चलाने का बड़ा तर्जुबा है।
पार्टी मजबूत होगी तो सभी नेताओं की चुनावी महुिम को भी ताकत मिलेगी। हालांकि इन सब के बीच जिला प्रधान कुलवंत सिंह मन्नण के ग्रुप को भी पार्टी के साथ ही जोड़कर रखना चुनौती रहेगी क्योंकि ध्रुवीकरण में एक गुट नाराज हो सकता है।