कनॉट प्लेस स्थित उग्रसेन की बावली अब नए रंग-रूप में देशी-विदेशी पर्यटकों को लुभाया करेगी
कनॉट प्लेस स्थित उग्रसेन की बावली अब नए रंग-रूप में देशी-विदेशी पर्यटकों को लुभाया करेगी। क्षतिग्रस्त हो चुकी इसकी सीढ़ियों व मेहराबों को निरीक्षण किया जाएगा। वहीं, जहां से पत्थर निकल गए हैं, वहां नए पत्थरों को लगाया जाएगा।
कनॉट प्लेस स्थित उग्रसेन की बावली का संरक्षण किया जाएगा। ऐसे में यह नए रंग-रूप में देशी-विदेशी पर्यटकों को लुभाया करेगी। बारिश, बदलते मौसम व भूकंप की वजह से जगह-जगह थोड़ी नष्ट हो चुकी इसकी सीढ़ियों व मेहराबों को संरक्षित किया जाएगा। वहीं, जहां से पत्थर निकल गए हैं, वहां नए पत्थरों को लगाया जाएगा।
शाम को घूमने आते हैं लोग
विशेष बात यह है कि इसे रोशनी से जगमग करने की भी योजना है। ऐसे में पर्यटक यहां शाम के वक्त भी घूमने आ सकते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इसका संरक्षण कार्य आठ वर्ष बाद करेगा। एएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इसका टेंडर जल्द ही जारी होगा। यूं तो राजधानी में कई सौ वर्ष पुराने जलाशय मौजूद हैं, इसमें कई ऐतिहासिक बावली भी हैं। जिसमें कई संरक्षण के अभाव में समय के साथ नेस्तनाबूद हो गई हैं, तो कई कंक्रीट के जंगल में कहीं खो गई हैं।
हालांकि, अब जो बावलियां बची हैं, वह भूमिगत पानी व रेन वॉटर स्टोरेज के महत्व के बारे में जागरूक कर रही हैं। ऐसे में उग्रसेन की बावली में बीते छह वर्ष बाद प्राकृतिक रूप से फिर से पानी आ गया है, जोकि अब लबालब नजर आ रही है। इसे देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से पहुंच रहे हैं।
उग्रसेन नामक अग्रोहा के राजा ने कराया था तैयार
इतिहासकारों के मुताबिक, मान्यता है कि महाभारतकाल में उग्रसेन नामक अग्रोहा के राजा ने इसे तैयार करवाया था। बाद में ऐतिहासिक तौर पर जो संदर्भ मिलता है, उसमें 14वीं शताब्दी में इसे अग्रवाल समुदाय के लोगों द्वारा फिर से बनाया गया, जो महाराजा अग्रसेन के वंशज माने जाते थे। इसमें 100 से अधिक सीढ़ियां हैं, जो जल स्तर तक ले जाती हैं और जैसे-जैसे नीचे जाते हैं, तापमान में भी गिरावट देखने को मिलती है।
बावली में पाना आनी हुआ शुरू
"इसके संरक्षण को लेकर कार्य किया जा रहा है। जल्द ही इसका कार्य शुरू किया जाएगा। बावली में लंबे समय बाद प्राकृतिक रूप से पानी आना किसी खुशी से कम नहीं है"। -प्रवीण सिंह, दिल्ली सर्कल चीफ व सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट, एएसआई
छात्रों की हल चल रहती है अधिक
हेली रोड स्थित यह बावली मूलत 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंचा एक कुआं है, इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित किया गया है। बावली के नीचे तक पहुंचने के लिए करीब 103-105 सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं। यहां पर्यटक के साथ स्कूली व कॉलेज के छात्र-छात्राओं की हल चल बनी रहती है। इन लोगों की संख्या भी पहले से बढ़ी है। ऊपर से तो यह बावली लाल बलुआ पत्थरों से बनी दीवारों के कारण बेहद सुंदर लगती है, लेकिन जैसे-जैसे इसकी सीढ़ियों से नीचे उतरते जाते हैं, एक अजीब सी गहरी चुप्पी फैलने लगती है।