बेघरों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सुनील कुमार कहते हैं कि सरकार के दावों के बावजूद रैन बसेरों की स्थिति ठीक नहीं है, यह अब भी कुल बेघरों से काफी कम हैं। बेघर लोगों ने बताया कि कोई कंबल दे देता है, तो थोड़ी राहत मिल जाती है
बेघरों के लिए दिल्ली सरकार की ओर से कई जगहों पर रैन बसेरे बनाए गए हैं, लेकिन तमाम खामियां व सख्त नियम होने से बेघर खुले आसमां के नीचे फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं। गोल मार्केट, बाबा खड़क सिंह मार्ग, बंगला साहिब, मिंटो रोड, कड़कड़डूमा, आईटीओ, यमुना बैंक, लक्ष्मी नगर, विवेक विहार समेत कई ऐसे इलाके हैं, जहां बेघर फुटपाथ पर सोते और अलाव सेंकते दिख जाएंगे। कुछ लोग रोजी-रोटी के चक्कर में अपनी इच्छा से फुटपाथ पर रात गुजारते हैं। इनमें कुछ रिक्शेवाले हैं। इनके अलावा कुछ ऐसे लोग हैं, जो लालबत्ती के पास गुब्बारे, खिलौने सहित अन्य सामान बेचते हैं। रात में वहीं फुटपाथ पर सो जाते हैं और सुबह अपना काम शुरू कर देते हैं।
कोई कंबल देगा इसी आस में कट रही सर्दी
रात नौ बजे के करीब बाबा खड़क सिंह मार्ग के पास अलाव जलाकर बैठे उत्तम ने बताया कि वह असम से वर्ष 1990 में दिल्ली आ गए थे। कोई कंबल दे देता है, तो थोड़ी राहत मिल जाती है। इसी तरह संदीप ने कहा कि ठंड से बचने के लिए कभी पुल के नीचे चले जाते हैं। बेघरों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सुनील कुमार कहते हैं कि सरकार के दावों के बावजूद रैन बसेरों की स्थिति ठीक नहीं है, यह अब भी कुल बेघरों से काफी कम है।
पहचान दिखाने के लिए नहीं हैं जरूरी कागजात
कई बेघरों ने बातचीत में बताया कि उनके पास खुद की पहचान बताने वाले जरूरी कागजात नहीं है। रात साढ़े आठ बजे कश्मीरी गेट स्थित हनुमान मंदिर के पास यमुना बाजार के रैन बसेरे में बेड के साथ खाने-पीने की व्यवस्था तो दिखी, लेकिन इसके बाहर फुटपाथ पर काफी बेघर सोते मिले।
खाने के इंतजार में बैठे लोग
साढ़े नौ बजे बंगला साहिब मार्ग के पास फुटपाथ पर खाने का इंतजार कर रहे बिहार के रहने वाले मदन लाल ने बताया कि वह यहां मजदूरी का कार्य करते हैं, लेकिन आधार कार्ड नहीं होने की वजह से उन्हें आश्रय घर में प्रवेश नहीं दिया जाता, जिस कारण वह खुले आसमान में सोने को मजबूर है। उन्होंने बताया कि कई बार काम मिलता भी है और नहीं मिलता। जिस कारण बिना कमाई के खाली हाथ लौटना पड़ता है। रात 10 बजे के लगभग यमुना बैंक के पास फुटपाथ पर बैठे अनीता और उनके पति महेश ने बताया कि वह दिन में कबाड़ बिनने का काम करते हैं और रात को यहीं फुटपाथ पर सो जाते हैं। फिलहाल ठंड इतनी तेज है कि अलाव जलाकर उसके सहारे बैठे हैं।
वहीं, एक अन्य बेघर सुमित ने बताया कि रैन बसेरे में 10-20 रुपये की मांग की जाती है। वह बताते है कि अब दस रुपये रैन बसेरे को दे देंगे, तो फिर महीने के 300 रुपये हो जाते हैं। गरीबी के हालात में ऐसा करना संभव नहीं होता इसलिए फुटपाथ पर सोने की मजबूरी है।