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मृत्यु की डोर विधाता के हाथ में है : सुधीर बंसल

Nandani Shukla
11 Feb 2025 9:30 PM IST
मृत्यु की डोर विधाता के हाथ में है : सुधीर बंसल
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क्या मृत्यु निश्चित है? विषय पर गोष्ठी संपन्न

गाजियाबाद । केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में क्या मृत्युनिश्चित है? विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कोरोना काल से 699 वां वेबिनार था। वैदिक प्रवक्ता सुधीर बंसल ने कहा कि मृत्यु एक सच है जिसे झुठलाना किसी के वश में नहीं है। मृत्यु एक सरिता है जो अनवरत बहती है। वह बात अलग है कि मृत्यु,मृत्यु में फर्क होता है।उन्होंने कर्म प्रधानता पर जोर देते हुए बताने की कोशिश की कि वीर एवं धीर-गंभीर व्यक्ति मृत्यु पर विजय पाने के लिए सर्व-प्रथम भय-मुक्ति के मार्ग की उपासना में रत्त रहता है और विशेष रूप से जीवात्मा जो इस जड़ रूपी देह को अपनी आत्म-पुञ्ज की लौ से हर क्षण चैतन्य बनाये रखती है,मुख्यतः चार प्रकार के कर्म उसके जीवन के इर्द-गिर्द बने रहते हैं, यथा सामान्य कर्म, अकर्म, विकर्म और सुकर्म। आर्य-समाज के नवम् नियम का हवाला देते हुए प्रवक्ता ने बताया कि "प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट नहीं रहना चाहिए,किन्तु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए,यही सुकर्म है और यही सर्व-श्रेष्ठ सदाचार समाज और सामाजिक-धार्मिक उत्थान में संकल्पित जीवन कभी मृत्यु से भयभीत नहीं होगा। शरीर नश्वर है।

आत्मा अज़र-अमर है।आत्मा कभी नष्ट नहीं होती। ये देह जो आत्मा के लिए कवच है वह उस जीव द्वारा अपने जीवन में किये गये श्रेष्ठ कर्मों के लिए इहलोक से परलोक गमन पश्चात् भी सदैव याद किया जायेगा और वस्तुतः उसके कर्म ही समाधि बनकर सदैव उसकी यश कीर्ति व्योम में,चारों दिशाओं में फैल कर वातावरण को सुगन्धित बनाये रखेंगे। अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए प्रवक्ता ने इतिहास में समाहित उन महान विभूतियों के कुछ उदाहरण भी दिये जिन्हें उनके सद्कार्यों के लिए सैकड़ों वर्षों बाद भी याद किया जाता है और आगे भी याद किया जाता रहेगा। आर्य-समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द के आर्ष पुरुषार्थ को कौन नहीं जानता और उनका प्रयाण,यही मृत्यु पर विजय है, ऐसा हर आर्य के लिए प्रेरणा संदेश है। स्वस्थ और दीर्घायु हेतु प्रसंगानुसार युवकों, तरुणियों, किशोर-किशोरियों का मार्ग-दर्शन करते हुए उन्हें सही अर्थों में ब्रह्मचर्य का पालन करने का संदेश दिया। गृहस्थ आश्रम जैसी महत्वपूर्ण विधा में रहते हुए,सांगोपांग पालन करते हुए उम्र के एक पड़ाव पर आकर ऋतुगामी (celibacy) रहना भी श्रेष्ठ ब्रह्मचर्य है,ऐसे मनुष्य को कभी मृत्यु का भय नहीं रहेगा। आधि- व्याधि,कष्ट,क्लेश,संताप,ईर्ष्या, अहंकार एवम् ताप रहित जीवन के हम सभी अनुगामी बनें, इन नकारात्मक तत्वों से वैराग्य रखें तो मनुष्य अवश्य जीवन की वैतरणी पार कर लेगा।शरीर की मृत्यु तो समय आने पर निश्चित है, वह डोर विधाता के हाथ में है पर शेष कर्म तो इस धरा पर उस जीवात्मा के हाथ में ही है।

मुख्य अतिथि आर्य नेत्री रजनी गर्ग व अनिता रेलन ने भी अपने विचार रखे। कुशल संचालन परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने किया। प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया। गायिका पिंकी आर्या, कुसुम भंडारी, प्रवीना ठक्कर, कौशल्या अरोड़ा, जनक अरोड़ा, रविन्द्र गुप्ता, राजश्री यादव, उषा सूद आदि के मधुर भजन हुए।

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