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स्वराज और सुराज का मंत्र महर्षि दयानन्द ने दिया : डा. रामचन्द्र

गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में "महर्षि दयानन्द के सपनों का भारत" विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कोरोना काल से 706 वां वेबिनार था।
मुख्य वक्ता डॉ. रामचन्द्र (संस्कृत विभागाध्यक्ष, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) ने कहा कि नवजागरण के पुरोधा, आर्यसमाज के संस्थापक एवं आधुनिक भारत के निर्माता महर्षि दयानन्द सरस्वती ने शिक्षा व्यवस्था, राजधर्म, इतिहास, स्त्री शिक्षा,आर्ष गुरुकुल परम्परा, कृषि एवं गोरक्षा, वेदों की यथार्थ व्याख्या एवं सच्ची उपासना पद्धति आदि विविध क्षेत्रों में अतुलनीय योगदान दिया है। उनके द्वारा रचित ग्रंथों,पत्र व्यवहार,शास्त्रार्थ, व्याख्यान एवं तत्कालीन समाचार पत्रों में प्रकाशित उनके विचारों के माध्यम से हमें उनके सपनों के भारत की स्पष्ट जानकारी प्राप्त होती है।
वर्तमान भारत में गुरुकुल परम्परा, समान रूप से वेदाध्ययन एवं शिक्षा का अधिकार तथा गोरक्षा आदि असंख्य पक्षों के वे जन्मदाता हैं। भारत की स्वतंत्रता में स्वदेशी, स्वराज एवं सुराज का मंत्र भी प्रबल रूप से महर्षि दयानन्द ने ही दिया था। डॉ. रामचन्द्र ने कहा कि महर्षि दयानन्द के स्वस्थ,समृद्ध एवं सशक्त भारत निर्माण के अनेक सपने अभी अपूर्ण ही हैं। शिक्षा व्यवस्था के सन्दर्भ में महर्षि का स्पष्ट सन्देश था कि सबको तुल्य खानपान एवं वस्त्र दिए जाए चाहे वह राजकुमार हो या दरिद्र की संतान हो। यह सपना जब तक पूरा नहीं होगा तब तक उन्नत भारत की कल्पना सम्भव नहीं है। आज समाज में नैतिक मूल्यों का घोर क्षरण हो रहा है जिससे सामाजिक समरसता बिखर रही है।
महर्षि दयानन्द ने संस्कारों एवं पञ्च महायज्ञों के माध्यम से इसे सुधारने का विधान किया था। आज युवा पीढ़ी में अपने ही देश की संस्कृति, परम्परा एवं इतिहास के प्रति गौरव बोध कम हो रहा है। यह चिंताजनक है कि आज बडी संख्या में युवा भारत को भारत न कहकर इंडिया कहने में गौरव अनुभव करता है। महर्षि ने अपने ग्रन्थों में भारतीय गौरव को प्रकाशित करने का अभूतपूर्व कार्य किया था। वे भारत के गौरवपूर्ण इतिहास के यथार्थ लेखन के भी प्रबल पक्षपाती थे। आज न केवल पाठ्यक्रम में अपितु लोकतंत्र के मंदिर संसद में भी राष्ट्र के गौरव पुरुषों के प्रति अपमान जनक टिप्पणी हो रही हैं।
महर्षि के सपनों के भारत में इस प्रकार के कदाचार के लिए कोई स्थान नहीं है। मुख्य वक्ता ने कहा कि अमृत काल में भारत उन्नत,समृद्ध एवं सशक्त बने इसके लिए विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय एवं अन्य संस्थानों में महर्षि दयानन्द के ग्रन्थों एवं विचारों का व्यापक अध्ययन होना चाहिए। बडी संख्या में दयानन्द पीठ एवं अध्ययन केन्द्र स्थापित होने चाहिए। एक टास्क फोर्स बनाकर महर्षि के सपनों के भारत के निर्माण का प्रयत्न करना होगा।
मुख्य अतिथि आर्य नेता राजेश मेहंदीरत्ता व अध्यक्ष सुधीर बंसल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन करते हुए आर्य समाज के 150 वें स्थापना दिवस की शुभकामनाएं दीं व प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण आर्य ने कहा कि हमें नववर्ष विक्रमी सम्वत पर गर्व होना चाहिए और उत्साह पूर्वक मनाना चाहिए। गायिका प्रवीना ठक्कर,रजनी गर्ग, कौशल्या अरोड़ा, जनक अरोड़ा, रविन्द्र गुप्ता, प्रतिभा खुराना, सरला बजाज, सुधीर बंसल आदि ने मधुर भजन सुनाए।