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गाजियाबाद। ‘अगर जीवन में कोई नेक काम नहीं कर सके तो जाते-जाते अपनी देह का ही दान कर जाएं। यह किसी के शोध के लिए काम तो आएगा। ताकि देश को अच्छे डॉक्टर मिलें, जिससे समाज का भला हो।’ मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. अशोक कुमार गदिया ने ये विचार दधीचि देहदान समिति के अंगदान महादान जागरूकता कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किये। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा कि मृत्यु आना तो निश्चित है लेकिन कब आएगी यह अनिश्चित है। किन्तु इस बीच हम कोई नेक काम करें। सबको खुशियां बांटें। यही समर्पण का भाव कहलाता है। समर्पण का मतलब नेकी।
अगर पूरी जिन्दगी आपने किसी को कोई खुशी नहीं दी तो आप अपना शरीर या अंग दान कर नेक काम कर सकते हो। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में अंतिम संस्कार को आवश्यक नहीं माना गया है। अगर माना गया होता तो ऋषि दधीचि समाजहित में देहदान नहीं करते। हमें ऋषि दधीचि के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। हम अंगदान और देहदान का संकल्प लें। ताकि समाज और देश को अच्छे डॉक्टर मिल सकें। दधीचि देहदान समिति के अध्यक्ष महेश पंत ने कहा कि साल भर में पांच लाख मौतें होती हैं लेकिन अंगदान या देहदान करने वालों की संख्या बहुत कम है। हमारी समिति नौजवानों को जागरूक करने का अभियान चलाए हुए है।
अभी तक दिल्ली-एनसीआर के 80 स्कूल-कालेजों में विद्यार्थियों को इसके प्रति जागरूक किया जा चुका है। कार्यक्रम में समिति के क्षेत्रीय संयोजक अविनाश चंद्र ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की। महासचिव कमल खुराना ने अंगदान के महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि हमारे कौन-कौन से अंग दूसरों के काम आ सकते हैं। आलोक कुमार ने दो गीत प्रस्तुत कर सभी को समर्पित भाव से समाज सेवा करने के लिए प्रेरित किया। अंत में मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ. अलका अग्रवाल ने सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अच्छी आत्मा में ही अच्छे विचार समाये रहते हैं।। इसलिए हम अच्छे विचारों में अंगदान और देहदान को भी शामिल करें। समाज हित में अंगदान का संकल्प लें। सभी आगंतुक अतिथियों को मेवाड़ की ओर से प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया।