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“पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ” की 119 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी 76 वें गणतंत्र दिवस पर समर्पित रही
घर घर सजा तिरंगा ध्वजा, मस्त मस्त लहराओ
अमृत बेला आजादी की, सब जन आज मनाओ .....
तुम सिन्दूर संजोकर रखना, लौटूंगा तो भर दूंगा
मुझपर तनिक भरोसा करना, नाम वतन का कर दूंगा !
गाजियाबाद। “पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ” की 119 वीं राष्ट्रीय गोष्ठी आभासी पटल पर “76 वें गणतंत्र दिवस पर” समर्पित रही । गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल से डॉ श्वेता दीप्ति, पूर्व अध्यक्षा हिन्दी केंद्रीय विभाग, त्रिभुवन विश्व विद्यालय तथा सम्पादक हिमालिनी हिन्दी मासिक पत्रिका काठमांडू उपस्थित रहीं वहीं विशिष्ट अतिथियों में नेपाल से ही डॉ लक्ष्मी जोशी प्रोफेसर, त्रिभुवन विश्व विद्यालय की सहभागिता रही । राष्ट्रीय गोष्ठी में मुरादाबाद से साहित्याभूषण – डॉ महेश दिवाकर की अध्यक्षता एवं वरिष्ठ कवि अवधेश सिंह ‘बंधुवर’ के संचालन में वरिष्ठ नवगीतकार- जगदीश पंकज, गीतकार वीरेंद्र सिंह ‘बृजवासी’, सत्या त्रिपाठी ने भावपूर्ण काव्य पाठ किया ।
कवि साहित्यकारों के मुख से देशभक्ति भाव से परिपूर्ण जहाँ एक ओर ओजस्वी प्रेरक गीतों का वाचन हुआ वहीं दूसरी ओर भारत की संप्रभुता के लिए खतरा बन रहे आतंक, देशद्रोह और भृष्टअचार से जुड़े विषय भी कविता गीत गजल विधा में रखे गए । मुरादाबाद से साहित्याभूषण डॉ महेश दिवाकर ने गीत के माध्यम से जन मानस को जागरूक करते गीत पढ़ा -“एक साथ मिल नेताओं ने, महाकुम्भ में डुबकी मारी! काँप गयीं संगम की लहरें, हमें बचालो हे गिरिधारी!! ये जनसेवक हैं दुष्कर्मी, अपराधों में नाम कमाया! भाग्य विधाता बने राष्ट्र के, राजनीति के अत्याचारी!!” मुरादाबाद से ही वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" ने गीत पढ़ – “तुम सिन्दूर संजोकर रखना, लौटूंगा तो भर दूंगा, मुझपर तनिक भरोसा करना, नाम वतन का कर दूंगा!”
नवगीतकार जगदीश पंकज ने गीत के माध्यम से भारतीय जनमानस के विरुद्ध हो रहे राजनीति की मनमानी पर अपनी बात रखी – “ फिर मंथन चल रहा / किस तरह /जन की रहे तन्त्र से दूरी । जन बस उलझा रहे / कि कैसे / रहे सुरक्षित दाना-पानी / राजनीति की / पगडंडी पर / चलती रहे रोज़ मनमानी / शोषण की किस तरह / व्यवस्था / रहे यथावत और जरूरी” ।
नेपाल से शामिल डॉ श्वेता दीप्ति ने विदेश में रहते हुए भारतवर्ष की अपनी जन्मभूमि के प्रति अगाध प्रेम और आस्था की अनुभूति को कविता से व्यक्त करते कहा - सोचती हूँ / एक दिन किसी उजले / गुनगुने दिन में / खोल दूँ अपनी मुट्ठी / और लुटा दूँ मन में / कैद भावों का उजास / और दीप्त कर लूं खुद को” । साथ में नेपाल से ही डॉ लक्ष्मी जोशी ने नेपाल में घटित हो रही अमानवीय त्रासदी को व्यक्त करते मार्मिक कविता पढ़ी ।
मंच का संचालन कर रहे वरिष्ठ कवि अवधेश सिंह ‘बंधुवर’ ने तिरंगे की आन बान शान पर ध्वजा गान किया – “घर घर सजा तिरंगा ध्वजा / मस्त मस्त लहराओ / अमृत बेला आजादी की / सब जन आज मनाओ ..... । कहीं न छूटे आंगन कोई / बाकी न रहे मकान / घर घर फहरे आज तिरंगा / संप्रभुता की शान / दर-दुकान और ठौर-ठिकाना / हंस कर आज सजाओ । अमृत बेला आजादी की/ सब जन आज मनाओ”।
दिल्ली से शामिल सत्या त्रिपाठी ने गजल के माध्यम से कहा – “यहीं जन्मे,पले, बढे, मरें इस माटी में,वतन अपने हम हिंदुस्ताँ की बातें करते हैं । बदन में जिनके खौलता लहू शहीदों का, नवाजिश उनकी, नौजवाँ की बातें करते हैं” । देर शाम तक चली इस राष्ट्रीय गोष्ठी को कविता प्रेमियों द्वारा देखा और सराहा गया ।