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रॉकी और रानी की प्रेम कहानी, करण जौहर के अच्छे डायरेक्शन के बावजूद कितना चलेगी कहना मुश्किल: अभीष्ट चतुर्वेदी

Shivam Saini
31 July 2023 7:09 AM GMT
रॉकी और रानी की प्रेम कहानी, करण जौहर के अच्छे डायरेक्शन के बावजूद कितना चलेगी कहना मुश्किल: अभीष्ट चतुर्वेदी
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28 जुलाई को रिलीज हुई फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी कैसी फिल्म है इसके बारे में आज बात करते हैं।

इस फिल्म की कहानी यह है कि रॉकी रंधावा एक दिल्ली के बहुत ही रईस पंजाबी परिवार से है जिनका लड्डू और मिठाई बेचने का बहुत बड़ा कारोबार है । जो कि पूरे हिंदुस्तान में फैला हुआ है और रानी चटर्जी एक टीवी न्यूज़ चैनल की एंकर है और वह भी एक रईस बंगाली परिवार से है। एक दिन एक काम की वजह से रॉकी और रानी की आपस में मुलाकात होती है और कुछ ही दिनों में उस काम को अंजाम देने के बीच में ही दोनों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है लेकिन जब शादी करने की बात आती है तो रानी बोलती है की दोनों के परिवारों की सोच और समझ एक दूसरे से बिल्कुल ही अलग है तो यह फैसला करते हैं कि दोनों एक दूसरे के परिवार के साथ 3 महीने के लिए रहते हैं ताकि दोनों को यह पता चल पाए कि यह दोनों की शादी अच्छी तरीके से चलेगी या नहीं। अब इसमें इन दोनों को क्या क्या मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, क्या अंत में यह दोनों का मिलन हो पाता है कि नहीं यह जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी पड़ेगी।

इस फिल्म की कहानी,स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स इशिता रॉय, शशांक खैतान और सुमित रॉय ने लिखें हैं। अगर कहानी की बात करें तो कहानी में कुछ नयापन नहीं है, ऐसी कहानी हम पिछले कई सालों से बहुत सारी फिल्मों में देखते आ रहे हैं लेकिन इसके स्क्रीनप्ले में बहुत सारे सब प्लॉट्स हैं जिसकी वजह से यह पुरानी कहानी भी नई लगती है जिसकी वजह से दर्शकों का ध्यान फिल्म से नहीं भटकेगा लेकिन फिल्म के दूसरे भाग की लिखाई थोड़ी गड़बड़ है जिसकी वजह से दूसरे भाग में फिल्म दर्शकों को लंबी लग सकती है। इस फिल्म का क्लाइमैक्स बहुत कमजोर है जिसे देखकर लगता है कि लेखकों को फिल्म खत्म करने की काफी जल्दी थी। वैसे ज्यादातर करण जौहर खुद अपनी फिल्म्स लिखते हैं लेकिन इस बार उन्होंने यह फिल्म खुद नहीं लिखी है जिसकी वजह से फिल्म के किरदारों और सींस में ठहराव नहीं है जो ज्यादातर करण जौहर की फिल्मों में होता है फिल्म के डायलॉग्स कहानी के हिसाब से बहुत अच्छी तरीके से लिखे गए हैं खासकर रणवीर सिंह के डायलॉग्स जो दर्शकों को खूब हसाएंगे खासकर फिल्म के पहले भाग में।

इसके दूसरे भाग मे कुछ डायलॉग्स और सींस ऐसे हैं जिनसे दर्शकों की आंखें नम हो जाए और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं

करण जोहर ने हमेशा की तरह इस बार भी बहुत अच्छा निर्देशन इस फिल्म मे भी किया है। उन्होंने फिर साबित कर दिया कि इस प्रकार कि एक अच्छी फिल्म बनाने मे उनका हाथ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री मे कोई नहीं पकड़ सकता। पिछले 10-12 वर्षों में यह करण जोहर की सबसे मनोरंजक फिल्म है।

अगर एक्टिंग परफॉर्मेंस की बात करें तो रणवीर सिंह ने बहुत बढ़िया काम किया है। इस फिल्म को इतना मनोरंजक बनाने में सबसे बड़ा श्रेय रणवीर सिंह की ही परफॉर्मेंस को जाता है। आलिया भट्ट ने भी अपने किरदार को बहुत लाजवाब तरीके से निभाया है। धर्मेंद्र और शबाना आज़मी का रोल बहुत ज्यादा लंबा नहीं है लेकिन जितना भी उनका इस फिल्म में काम है वह इन दोनों ने अच्छे तरीके से निभाया है। जया बच्चन एक तरीके से इस फिल्म की विलेन हैं और उन्होंने अपना किरदार इतने अच्छे से निभाया है कि कुछ सींस में आपको उनके किरदार से घृणा भी हो जाएगी, आमिर बशीर, तोता रॉय चौधरी, चुर्नि गांगुली, अंजलि आनंद, शिती जोग, नमित दास, अभिनव शर्मा इन सभी ने अपने किरदारों को बहुत अच्छे से निभाया है

इस फिल्म का संगीत अच्छा है लेकिन यह काफी नही हैं, जितने शानदार संगीत की आशा आप एक करण जौहर की फिल्म से रखते हैं। कुछ सींस में दशकों पुराने बहुत अच्छे गानों का इस्तेमाल किया गया है और वह सुनने मे भी बहुत अच्छे लगते हैं और उस सीन को भी और अच्छा बना देते हैं।

इस फिल्म की एडिटिंग थोड़ी कमजोर है खासकर दूसरे भाग की। इसको 5-10 मिनट और काटा जा सकता था। इस फिल्म को बहुत भव्य स्तर पर शूट किया गया है और वह लगभग हर एक सीन में झलकता है इसकी वजह से यह फिल्म भी करण जोहर की पिछली फिल्म्स की तरह देखने में बहुत बड़ी और खूबसूरत लगती है ।

अगर कुछ गलतियों को नजरअंदाज किया जाए तो रॉकी और रानी की प्रेम कहानी एक बहुत ही मनोरंजन से भरी फिल्म है जिसमें वह पूरा मसाला भरा हुआ है जिसकी आशा आप करण जौहर की फिल्म से रखते है यानी कि कॉमेडी, लव स्टोरी, इमोशनल फैमिली ड्रामा, बहुत ही भव्य सेट्स और लोकेशंस, डांस और संगीत ।

इस फिल्म को आप अपने पूरे परिवार और अपने दोस्तों के साथ देखने जा सकते हैं।

हो सकता है की बहुत ज्यादा लागत की वजह से यह फिल्म चल जाए लेकिन बहुत ज्यादा नहीं चल पाएगी।

अभीष्ट चतुर्वेदी

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