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बॉलीवुड

भारत का नाम दुनिया में रोशन करने वालों पर सिनेमा बनना जरूरी, आजादी की कहानियां बहुत हुईं

SaumyaV
19 Nov 2023 10:47 AM GMT
भारत का नाम दुनिया में रोशन करने वालों पर सिनेमा बनना जरूरी, आजादी की कहानियां बहुत हुईं
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भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे के अध्यक्ष बनाए गए अभिनेता, निर्देशक रंगनाथन माधवन खुद को सिनेमा का एक छात्र आज भी मानते हैं। फिल्म ‘रॉकेट्री’ के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुके माधवन की नई वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है। अगले साल उनकी दो हिंदी फिल्में भी रिलीज के लिए तैयार हो रही हैं। अपनी अगली फिल्म की शूटिंग के लिए स्कॉटलैंड जा रहे आर माधवन से ये एक्सक्लूसिव बातचीत की, ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने।

इतना सब कुछ हासिल करने के बाद भी आप अपने बारे में ज्यादा कुछ बात करने नहीं हैं, ऐसा क्यों?

जिस दिन मैं अपनी उपलब्धियों के बारे में बात करूं तो मुझे ऐसा लगना चाहिए कि हां, अब कुछ पाने को बाकी नहीं रह गया है। मैं अब भी मन के भीतर एक बदमाश बच्चा ही हूं। मैं भी अक्सर सोचता हूं कि इतने सारे विशेषण मैंने कैसे कमा लिए? अभी तो बहुत जीना बाकी है। मैं इसीलिए अपनी उपलब्धियों के बारे में ज्यादा बात नहीं कर पाता हूं और थोड़ी झिझक महसूस करता हूं।

अभी आपकी वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ रिलीज हुई है। इसके पहले आपने ‘रॉकेट्री’ भी बनाई। दोनों की पृष्ठभूमि विज्ञान है। सवाल ये है कि जो देश चांद पर जा पहुंचा है, उस देश में विज्ञान आधारित सिनेमा इतना क्यों नहीं बनता?

मेरा ये मानना है कि सिर्फ विज्ञान आधारित सिनेमा ही नहीं बल्कि भारतीय सिनेमा में प्रगतिशील कहानियां ही नहीं बन रही हैं। मैं भारत की बात नही कर रहा हूं। मैं एक भारतीय की बात कर रहा हूं। आज के दौर में एक भारतीय जिस तरह वैश्विक परिदृश्य में खुद को शक्तिशाली महसूस कर रहा है। हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत हो चुकी है। हर वैश्विक कंपनी और हर बड़े देश में भारतीय महत्वपूर्ण पदों तक पहुंच चुके हैं। एक आम भारतीय पहले विदेश जाता था तो डरा सहमा सा रहता था। अब वह पूरी शान से दुनिया घूमता है। हमारे सिनेमा की कहानियां अब भी आजादी की लड़ाई या देशप्रेम की कहानियों में ही अटकी हैं लेकिन हमारे देश के तमाम ऐसे लोग हैं जिन्होंने दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया है, उन पर भी सिनेमा बनना चाहिए।

जैसे कि आपने ‘रॉकेट्री’ बनाई..

मैंने तो एक हादसे पर फिल्म बनाई थी जिसका रिश्ता विज्ञान से निकला। लेकिन, आप स्टीवन स्पीलबर्ग को देखिए। जब उन्होंने सिनेमा बनाना शुरू किया तो हॉलीवुड में रोमांस, सोप ओपेरा, वेस्टर्न क्राइम ही था, लेकिन उन्होंने सिनेमा में पहले विज्ञान, फिर पुराण और फिर पर्यावरण और भी न जाने क्या क्या लाकर सिनेमा को कहां पहुंचा दिया। ये है प्रगतिशील सिनेमा जो हमारी युवा पीढ़ी को प्रेरित कर सके, उन्हें एक नई छलांग लगाने का हौसला दे सके। मैं ये देखकर आश्चर्यचकित रह जाता हूं कि उनके वैज्ञानिक कैसे फिल्मकार बन गए या कैसे उनके फिल्मकार वैज्ञानिक बन गए?

मतलब कि हम गाना तो गाते हैं ‘जब जीरो दिया मेरे भारत ने’, लेकिन जिसने जीरो दिया, उसकी कहानी कहने से चूक जाते हैं..

नहीं लिखते हैं या मैं कहूं कि लिख नहीं पाते हैं। हमारे फिल्मकारों का जैसे विकास हुआ है, ये इसकी भी वजह से है। ये लोग वही लिखना या बनाना चाहते हैं जो देखकर वे पले हैं। उससे निकलकर अलग तरह की फिल्में बनाने के लिए उन्हें इस ढर्रे से बाहर निकलना होगा और एक अलग तरह का शोध करना पड़ेगा।

एक शोध ये भी है कि माधवन बीते ढाई दशक से लवर बॉय बने हुए हैं। सोशल मीडिया पर आपकी हर नई फोटो वायरल होती है, और आपके आसपास एक अलग तरह की सकारात्मकता दिखती है, इसका राज क्या है?

मुझे अच्छे इंसानों से वाकई में प्यार हो जाता है। और, मैं अपने आसपास की महिलाओं का जो सम्मान करता हूं वह मेरी आंखों से छुप ही नहीं पाता है। मैं आजतक किसी ऐसी महिला से नहीं मिला हूं जिसमें कोई न कोई गुण अपनाने लायक न हो। कुछ लोगों में ये गुण भले दिखे न हों, लेकिन उनकी भी आभा अलग ही है। मेरे अपने घर में अपनी मां, अपनी पत्नी को देख मैं हैरान रह जाता हूं कि इन लोगों में लगातार अनथक काम करते रहने की कितनी ताकत है और अद्भुत ताकत है।

और, आपकी शख्सियत संवारने में आपकी मां और आपकी पत्नी का क्या क्या योगदान रहा?

मेरे माता-पिता ने मुझे एक ऐसा धर्म अपनाने की प्रेरणा दी जिसमे सर्वहित की भावना हो। समभाव की भावना हो। वह कहते हैं कि ईश्वर हमारे मन में हैं। और, अगर ईश्वर हमारे भीतर है तो उसकी झलक हमारे चेहरे पर दिखनी ही चाहिए। मेरी पत्नी सरिता मेरी बहुत बड़ी शक्ति रही हैं। उनको मैं शादी करके लाया तो मैंने उनका ख्याल रखने, उनसे प्यार करने, उनको संसार की सारी खुशियां देने के बारे में सोचा था। लेकिन, वह आईं और जिस तरह से उन्होंने मेरी सारी जिम्मेदारियां ओढ़ लीं, उसने मुझे यहां तक पहुंचाने में मदद की। मैं महीनों महीनों शूटिंग के लिए बाहर रहा, लेकिन जब भी लौटा मेरा घर हमेशा घर जैसा ही रहा।

और, ‘द रेलवे मेन’ के बाद आगे क्या..?

फिल्म ‘रॉकेट्री’ में मैंने जीवन के पांच साल लगाए हैं। मेरी पत्नी सरिता ने ही कहा कि ये जुनून अब पूरा हो गया और अब मुझे अपने शुभचिंतकों की वह शिकायत दूर करनी चाहिए कि मैं परदे पर कम दिखता हूं। तो इस बीच मैंने पांच नई कहानियों पर काम पूरा किया है। अगले साल अजय देवगन के साथ एक फिल्म ‘वश’ आ रही है। उसके बाद अक्षय कुमार के साथ हमने एक फिल्म पूरी की है जिसका अभी नाम तय होना बाकी है। फिर एक फिल्म आ रही है, ‘हिसाब बराबर’। और एक तमिल फिल्म भी है जिसका नाम है, ‘टेस्ट’। इसके अलावा एक और तमिल फिल्म में अभी स्कॉटलैंड में शुरू करने जा रहा हूं।

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