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बॉलीवुड

शिव की साधना को कलाकारों का वरदान, इंसानियत के वीरों को सच्ची श्रद्धांजलि देती सीरीज

SaumyaV
18 Nov 2023 10:49 AM GMT
शिव की साधना को कलाकारों का वरदान, इंसानियत के वीरों को सच्ची श्रद्धांजलि देती सीरीज
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बचाइए हुजूर इस शहर को बचाइए’, ‘ज्वालामुखी के मुहाने बैठा भोपाल’, ‘ना समझोगे तो आखिर मिट जाओगे’, ये वो तीन हेडलाइंस हैं जो भोपाल के पत्रकार राजकुमार केसवानी ने शहर में हुए भयानक गैस हादसे के दो साल से पहले अपने समाचार पत्र ‘रपट’ की खबरों पर लगाईं। केसवानी अभी दो साल पहले कोरोना संक्रमण काल में कोरोना का कहर नहीं झेल पाए और चल बसे। इससे पहले उनकी इस अनथक कोशिशों पर कोई नौ साल पहले एक फिल्म भी बनी ‘भोपाल: ए प्रेयर फॉर रेन’। सिनेमा के सुधी दर्शकों ने ये फिल्म देखी भी। अब मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए हुए मतदान के ठीक अगले दिन नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’। और, नेटफ्लिक्स ने ये बहुत ही सराहनीय फैसला किया, इसे मतदान से पहले रिलीज न करने का, क्योंकि इस सीरीज में वह सब कुछ है जो मध्य प्रदेश के सियासी माहौल में नया तूफान ला सकता था।

अपने लिए जिये तो क्या जिये...

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ठीक बस्ती के किनारे यूनियन कार्बाइड को फैक्ट्री लगाने की अनुमति किसने दी? इस पर लंबी बहसें हो चुकी हैं। कैसे इस गैस हादसे का जिम्मेदार अमेरिकी अधिकारी सरकारी सुरक्षा के बीच देश छोड़ने में कामयाब रहा? सीरीज यहां से शुरू होती है। पत्रकार केसवानी से प्रेरित किरदार कर रहे सन्नी हिंदुजा के नजरिये से सीरीज आगे बढ़ती है। केसवानी का एक दोस्त इस फैक्ट्री में गैस रिसाव की चपेट में आकर मारा गया था। सनी हिंदुजा का किरदार भी इसी हादसे की पड़ताल करते करते पुलिस और प्रशासन के निशाने पर आ जाता है। उधर, स्टेशन मास्टर की कहानी है। वह अपने बेटे को सरकारी नौकरी करने के लिए प्रेरित कर रहा है, बेटे को यूनियन कार्बाइड की नौकरी आकर्षक लगती है। एक विधवा मां का बेटा पहले दिन रेलवे की नौकरी करने आया है। और, कहानी में रहस्य और रोमांच का हिस्सा बनाए रखने को है एक ऐसा लुटेरा जो भोपाल स्टेशन की तिजोरी में रखे एक करोड़ रुपये लूटने उसी रात वहां नमूदार होता है, जिस रात गैस रिसाव का हादसा होता है। रेलवे स्टेशन पर संचार लाइनें ठीक करने का काम भी दिन में चल रहा होता है तो जब हादसा होता है तो स्टेशन मास्टर बाहर से मदद मांगने की हालत में भी नहीं होता, फिर क्या होता है? इसी पर बनी है यशराज फिल्म्स की ओटीटी शाखा वाईआरएफ एंटरटेनमेंट की सीरीज ‘द रेलवे मेन’।

शिव रवैल को स्थापित करती सीरीज

वेब सीरीज ‘द रेलवे मैन’ चार एपिसोड की तयशुदा कहानी है। अगले सीजन की गुंजाइश नहीं है और ये चार एपिसोड किसी फिल्म की तरह एक के बाद एक देखे जा सकने के लिए बिल्कुल मुफीद हैं। इस बेहतरीन सीरीज का तमगा बंधता है निर्देशक शिव रवैल के सिर पर। 10 साल से यशराज फिल्म्स में हर तरह का काम करते रहे शिव को इस सीरीज पर काम करने के लिए निर्माता आदित्य चोपड़ा ने हरी झंडी तब दी जब शिव ने कोई दो साल इसकी कहानी, पटकथा, संवाद और इसके इतिहास व भूगोल पर सबकुछ झोंककर काम किया। ये मेहनत सीरीज में दिखती भी है। कुछ असली और कुछ फिल्माए गए दृश्यों की फुटेज के कोलाज के साथ शुरू होने वाली ये सीरीज लय में आने का समय लेती है और एक बार जैसे ही इसकी रवानी बनती है, फिर सीरीज थमने का नाम नहीं लेती। बतौर निर्देशक भी शिव रवैल ने अपने पहले ही उद्यम में दर्शकों का ध्यान खींच लिया है।

बम बम बाबिल और दमदार दिव्येंदु

हादसे की रात के दो और प्रमुख किरदार उस रात भोपाल रेलवे स्टेशन पर मौजूद दिखते हैं। एक है अपनी नौकरी के पहले ही दिन एक अजब हादसे में उलझ गए लोको पायलट के किरदार में बाबिल खान। पिछली बार मैंने बाबिल के लिए लिखा था कि जब भी वह परदे पर आते हैं अपने पिता इरफान की याद दिला जाते हैं। इस बार इस खामी से बाबिल पूरी तरह दूर हैं। वह इरफान की छाया से निकले कलाकार के रूप में इस सीरीज में नजर आते हैं। भोपाल की बोली के लहजे को पकड़ने में कामयाब रहे बाबिल का स्टेशन मास्टर की हर कोशिश का दायां कंधा बनने की भरसक कोशिश करने वाले किरदार में कमाल का अभिनय करना उनकी बड़ी जीत है। अब यहां से वह कहां जाएंगे, इस पर भी जमाने की नजर रहेगी। स्टेशन का दूसरा अहम किरदार दिव्येंदु शर्मा ने निभाया। पुलिस की वर्दी में होने का असर इस किरदार को पता है। उद्देश्य उसका कुछ और है और वह हादसे के बीच होने का एहसास समझने के बाद वह करता कुछ और है। कहानी में कुछ पल हास्य के भी इस किरदार के चलते आते हैं और ये शिव रवैल की लिखाई की मजबूती है कि एक बहुत ही गंभीर कहानी में भी वह कुछ हल्के फुल्के लम्हे छिड़कने में कामयाब रहे।

सीरीज का मजबूत स्तंभ बने माधवन

वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ को इन तीन किरदारों के अलावा इसके कुछ अन्य किरदारों से भी काबिले तारीफ मदद मिलती है, उसमें सबसे पहला नाम है अभिनेता रंगनाथन माधवन का। माधवन को हाल ही में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला है, वह उस फिल्म इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष भी बनाए गए हैं जिस पर सिनेमा के लिए हुनरमंद तकनीशियन और कलाकार तराशने की जिम्मेदारी है। और, मध्य रेलवे के महाप्रबंधक के अपने किरदार में वह ये साबित भी करते हैं कि उन्हें ये सब इनाम इकराम क्यों मिल रहे हैं। माधवन के चेहरे का तेज उन्हें अपने दौर का एक बेमिसाल अभिनेता बनाता है। वह जब संवाद बोलते हैं तो उस दृश्य पर उनकी छाप साफ नजर आती है। रेलवे की महानिदेशक बनीं जूही चावला के किरदार से उनके निजी और व्यावसायिक रिश्ते दोनों हैं। और, दोनों रिश्तों के धागे माधवन ने बहुत मजबूती से इस कहानी में पकड़े रखे हैं।

कमाल सनी, सुनीता, मोना और राजपाल के

शिव रवैल को अपनी इस वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ की कास्टिंग डायरेक्टर शानू शर्मा से भी भरपूर मदद मिली है। छोटे से छोटे किरदार में काबिल कलाकारों को लेकर शानू ने इस सीरीज का हर रंग चमकदार रखा है। एक अनाथ बच्ची को पाल रही महिला रेलवे कर्मचारी के किरदार में सुनीता रजवार का संवेदनशील अभिनय बहुत प्रभावी है। अपने बेटे को लड़की बनाकर, उसका मुंह ढांककर सिख विरोधी दंगाइयों से बचाने की कोशिश करती मां के किरदार में मोना सिंह की मजबूती हो या फिर इन दोनों को बचाने की कोशिश कर रहे रेलवे गार्ड के किरदार में रघुवीर यादव का दर्शकों का दिल जीत लेना, ये सब सीरीज को बिंज वॉच करने के लिए बाध्य करते हैं। सनी हिंदुजा से तो सीरीज शुरू ही होती है और कहानी का श्रीगणेश करने के लिए उनसे बेहतर कोई दूसरा अभिनेता इस किरदार के लिए उनका अभिनय देखने के बाद सोचना भी मुश्किल है। फैक्ट्री से बाहर निकलते समय हादसे की सूचना पाकर फिर फैक्ट्री में घुसे कर्मचारी के रूप में दिब्येंदु भट्टाचार्य ने भी अपना असर छोड़ा है। सीरीज तकनीकी रूप से भी बहुत अच्छी है। इसकी प्रोडक्शन डिजाइनिंग, एडिटिंग, सिनेमैटोग्राफी और संपादन सब शिव रवैल ने बहुत कायदे से जमाया है।

‘द रेलवे मेन’ की सियासी अंतर्धारा

ये तो थी वेब सीरीज जैसी दिखती है, उसकी बात। लेकिन, इस सीरीज की अपनी एक अलग अंतर्धारा भी है। राजीव गांधी का टीवी स्क्रीन पर ये कहते दिखना कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है और ट्रेन पर सिखों की तलाश में दंगाइयों का हमला, सीरीज का बड़ा संकेत है। संकेत इसमें इस बात का भी है कि तत्कालीन रेल मंत्री के दफ्तर में जो कुछ हुआ, वह सामान्य नहीं है। भोपाल में रिसी गैस के प्राणनाशक होने की बात पता करने वाले जर्मन वैज्ञानिक का सौभाग्यवश भारत में होना और इस गैस का असर कम करने की दवा को भोपाल पहुंचाने की उनकी कोशिश को विफल किया जाना, ये सारी वे घटनाएं हैं जो हकीकत में हो चुकी हैं। उस समय की कांग्रेस सरकार ने भले इसके तुरंत बाद रेल मंत्री बदला हो, लेकिन सच ये भी है कि कंपनी के संचालन के लिए जिम्मेदारों को कटघरे तक पहुंचाने की बात अब तक अधूरी ही है। मामला सियासी है और इसीलिए इसका मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के मतदान के बाद रिलीज किया जाना नेटफ्लिक्स प्रबंधन का फैसला भी कम सियासी नहीं है, और इसकी तारीख मतदान के बाद तय करने के लिए वह शाबासी के हकदार हैं।


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