गणपति पंडाल में एक साथ 36 हजार महिलाओं का उपनिषद पाठ
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है, भारत एक रीति- रिवाज़, भाषाएं, प्रथाएं, और परम्पराएओं को आपस में इस तरह समेट कर रखता है। मनो जैसे सभी एक ही हो। और सबसे खूबसुरत बात की कोई भी शूभ काम हो ओर श्री गणेश ना हो तो मोनो सब कुछ अधूरा है।
महाराष्ट्र के पुणे में सबसे प्रसिद्ध दगडूसेठ गणपति पंडाल में बीते दिन एक साथ 36 हजार महिलाओ ने ‘अथर्वशीर्ष’ का पाठ किया। ‘अथर्वशीर्ष’, संस्कृत में रचित एक लघु उपनिषद है, जो ज्ञान और बुद्धि के देवता भगवान श्री गणेश को समर्पित है। ये गणेश उत्सव में अथर्वशीर्ष के वार्षिक पाठ का 36वां साल है। पंडाल में रूस और थाईलैंड से आए श्रद्धालु भी शामिल हुए।
19 सितंबर से गणेश उत्सव की शुरूआत हो चुकी है। पुराने समय में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी पर भगवान गणेश प्रकट हुए थे। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर तक मनाया जाता है। इन दस दिनों में प्रथम पूज्य गणपति की विशेष पूजा की जाती है। गणेश जी और उनकी पूजा से जुड़ी कई प्राचीन परंपराएं हैं, जिनका पालन आज भी किया जाता है।
गणेश जी का वाहन मूषक (चूहा) कैसे बना?
ये तो सभी लोग बचपन से देखते सुनते आ रहे है की गणेश की सवारी चुहा है, लेकिन आपने कभी सोचा आखिर चुहा ही उनकी सवारी कैसे बनी। तो आईए जानते है। एक असुर ने मूषक यानी चूहा बनकर पाराशर ऋषि के आश्रम को बर्बाद कर दिया था। ऋषियों की रक्षा के लिए गणेश जी प्रकट हुए और उन्होंने अपना पाश फेंककर मूषक को बंदी बना लिया। मूषक भगवान से तर्क-वितर्क करने लगा और बोला कि आप मुझसे कोई वर मांग लो। तब गणेश जी इस बात पर हंसे और कहा कि तू मुझे कुछ देना चाहता है तो मेरा वाहन बन जा। मूषक इसके लिए राजी हो गया। गणेश जी ने अपना भार मूषक के अनुसार कर लिया और उस पर सवार हो गए।
गणेश जी प्रथम पूज्य कैसे बने?
इतना तो सभी जानते है कि घर हो या आफिस कोई भी शूभ काम हो तो सबसे पहले गणेश जी का पुजा करते है, लेकिन क्यों तो समझे कि एक दिन कार्तिकेय गणेश जी के बीच शर्त लगी कि कौन सबसे पहले संसार का चक्कर लगाकर आएगा। कार्तिकेय स्वामी तो तुरंत ही अपने मोर पर बैठकर उड़ गए, लेकिन गणेश जी का वाहन चूहा धीरे-धीरे चल रहा था। गणेश जी ने शिव-पार्वती की परिक्रमा कर ली और कहा कि मेरे माता-पिता ही मेरा संसार है। गणेश जी की इस बात से शिव जी काफी खूश हुए और उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दे दिया।