दिवाली पर इस मंदिर में होती है भारी भीड़, देश के 4 पुरातन मंदिरों में से एक है महालक्ष्मी का यह स्थान
भारत देश में वैसे तो देवी महालक्ष्मी के छोटे-बड़े अनेकों मंदिर मौजूद है, लेकिन इनमें से कुछ ही मंदिर ऐसे है, जहां लाखों भक्तों की आस्था जुड़ी है. आज हम आपको देवी श्री महालक्ष्मी के ऐसे ही एक प्राचीन मंदिर के बारे में बता रहे है, जहां दिवाली पर देशभर से लाखों भक्त सुख समृद्धि और धन की कामना लिए दर्शन के लिए पहुंचते है. इस दिन माता को बत्तीस मुखी कमल पुष्प चढ़ता है, साथ ही माता की सवारी उल्लू के भी यहां भक्तों को दर्शन होते है. तो चलिए जानते है आखिर कहां है महालक्ष्मी का यह मंदिर.
बता दें की यह मंदिर मध्यप्रदेश के खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक नगरी ऊन में मौजूद है. बताया जाता है की देवी श्री महालक्ष्मी का यह मंदिर मध्यप्रदेश का सबसे प्राचीन और एकमात्र मंदिर है. इसी साल नवरात्रि में कई वर्षों बाद जब माता ने अपना छोला छोड़ा तब सभी भक्तों को माता की छह भुजाओं वाली प्रतिमा के दर्शन हुए.मान्यता है की देवी की यह प्रतिमा स्वयंभू होकर दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.
भारत के चार पुरातन मंदिरों में से एक
मंदिर के पुजारी नरेंद्र कुमार पंडित ने कहा कि भारत देश में सिर्फ चार प्रमुख प्राचीन (पुरातन) महालक्ष्मी मंदिर है. जो की महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश में स्थित है. उन्हीं में एमपी का यह एकमात्र महालक्ष्मी मंदिर खरगोन जिले के ऊन में है. इसके अलाव महाराष्ट्र के मुंबई, कोल्हापुर और हिमाचल प्रदेश के भरमौर में मौजूद है |
छः भुजा धारी माता के तीन रूप
ऊन स्थित महालक्ष्मी मंदिर में कमल पुष्प पर विराजमान माता के छः हाथ है. दाई ओर से पहले हाथ में अंकुश, दूसरे में कमल पुष्प और तीसरे में धन की वर्षा कर रही है. वही बाई ओर के पहले हाथ में चक्र, दूसरे में घड़ा एवं तीसरे साथ से मां वरदान दे रही है. पुजारी का कहना है की माता यहां दिन में तीन रूपो में दर्शन देती है. सुबह बाल्या अवस्था, दोपहर में युवा अवस्था एवं शाम को वृद्ध अवस्था में दर्शन होते है.
चढ़ता है कमल पुष्प, होते है उल्लू के दर्शन
पुजारी ने आगे कहा कि ऊन में ही स्थित कमल तलाई में खिलने वाले बत्तीस मुखी कमल पुष्प दिवाली पर माता को कई वर्षो से चढ़ाएं जा रहे है. हालांकि कुछ वर्षो से तालाब में फूल खिलना बंद हो गए है, अब सफेद और गुलाबी कमल चढ़ाएं जाते है. जिनकी पंखुड़ियों की संख्या कम होती है. इसके अलाव मां की सवारी उल्लू मंदिर में आते है जिनके दर्शन भक्तों को होते है. काली चौदस के रात हवन होता है. अगले दिन सुबह 4 बजे से भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है |