एक कायाकल्पी रहस्यमयी संत बर्फ़ानी दादाजी, मीडिया और दुनिया की चमक दमक से दूर एक वास्तविक संत की कहानी।

जिनको उनके भक्त कोई शिव तो कोई विष्णु के रूप में पूजते है।

Update: 2023-05-11 11:04 GMT

आज हम आपको एक ऐसे संत के बारे में बताने जा रहे है जिनके बारे में जितना जानो वह कम ही है। इन संत को लोग कैलाश बाबा या बर्फ़ानी दादाजी के नाम से जानते है। कहाँ जाता है की इनका जन्म 12/10/1792 को महान संत श्री गौरीशंकर महाराज के आशीर्वाद से उन्नाब के डोडियाखेड़ा गाँव हुआ। ज़मींदार हरिदत्त दुबे उनके पिता थे।

उनके जन्म के बारे के कहाँ जाता है कि ज़मींदार हरिदत्त दुबे के कोई संतान नहीं थी, एक बार वे सपत्नीक तीर्थाटन करने नर्मदा के घाट पर गए वहाँ उन्होंने परमसंत गौरीशंकर महाराज और उनकी जमात की खूब सेवा की सेवाभाव से प्रसन्न हो कर गौरीशंकर महाराज ने कुछ वरदान माँगने को कहाँ इस पर उन्होंने पुत्र प्राप्ति की इच्छा प्रगट की। इस पर गौरीशंकर महाराज ने उन्हें दो पुत्रों का आशीर्वाद दिया साथ ही एक शर्त रख दी एक बालक हमें देना पड़ेगा।

कुछ समय बाद हरिदत्त दुबे के यहाँ दो जुड़वा पुत्रों ने जन्म लिया।

एक दिन गौरीशंकर महाराज अपनी जमात के साथ उनके गाँव पहुँचे एक वचन के अनुसार एक बालक की माँग की परंतु एक माँ अपने बच्चे को देने को तैयार नहीं थी इस पर गौरीशंकर महाराज नाराज़ हो गए और कहा की हम देना जानते है तो लेना भी जानते है ।

डर के मारे उन्होंने एक बच्चा संतश्री को दे दिया उस समय उनका नाम लालबिहारी दास था और वो सिर्फ़ 8 साल के थे।

गौरीशंकर महाराज उनको लेकर नर्मदा के घाट पर पहुँचे उसी समय वहाँ तेरह भाई पंच अखाड़े के संत अर्जुनदास जी भी अपनी जमात के साथ मौजूद थे। गौरीशंकर महाराज ने धर्म की शिक्षा दीक्षा हेतु लालबिहारीदास को उन्हें सौंप दिया वे उन्हें लेकर अयोध्या आ गए। जहाँ उन्होंने वेद सहित धार्मिक ग्रंथ , ज्योतिषशास्त्र, आयुर्वेद, मे निपुणता हासिल की। इसके बाद वो वापस जमात में आ गए और विख्यात संत धूनी वाले दादाजी के साथ रहे। यहाँ से वो कैलास मानसरोवर गए और वहाँ उन्होंने गणेश लामा से तंत्र सिखा.

कहाँ जाता है कि उन्होंने वही शिव की कठिन साधन की और जब उनका शरीर गलने लगा तब भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर सर्वशक्तिशाली दस महाविद्या में से एक माँ त्रिपूर सुन्दरी के को सिद्ध कराया और हनुमान जी की साधना करने को कहा। वही से उनका नाम लाल बिहारीदास से बर्फ़ानी दादा पड़ा।

यही ज्ञानगंज में उन्होंने फूलेरी बाबा से 1930 में कायाकल्प और शरीर को जवान रखने की साधना सीखी।

उनके कई भक्तों का कहना है कि हम अपने पिताजी के साथ इनके दर्शन करने आते थे दादाजी तब भी ऐसे थे और आज भी ऐसे है जबकि ऐसे भक्तों की खुद उम्र 50-60साल रही होगी।

महाराष्ट्र के बड़े संत गगनगिरी महाराज की सेवा में रहने वाले स्वामी श्याम बताते है गगन गिरी महाराज ने उन्हें बताया था कि धूनी वाले दादाजी की जमात में खुद गगन गिरी महाराज , ताजुद्दीन औलिया नागपुर, साँई बाबा, गजानंद जी महाराज और बर्फ़ानी दादाजी साथ साथ थे। गगन गिरी महाराज ने स्वामी श्याम को बर्फ़ानी दादाजी को सौंप दिया उसके बाद स्वामी श्याम बर्फ़ानी दादाजी की सेवा में ही रह रहे है।




जब हमने इस पर शोध किया तो पता लगा कि Internet पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार ये सभी संत समकालीन थे।

कुछ इनके शिष्यों का ये भी मानना है कि बर्फ़ानी दादाजी एवं विख्यात संत बाबा देवराह जिनका जन्म 1740 में बताया जाता है के साथ भी कुछ समय रहे।

1962 में चीन में कैलाश मानसरोवर को अपने क़ब्ज़े में लिया तो बर्फ़ानी दादा हरिद्वार आ गए इसके बाद कहते है शिव ने इन्हें माँ नर्मदा की सेवा में जाने को कहा इसके बाद वे नर्मदा जी के उदगम स्थल अमरकण्टक ,मo प्रo आ गए और माँ नर्मदा की साधना की और एक आश्रम की स्थापना की।

राजनंदगाओ, छत्तीसगढ़ के पाताल भैरवी शक्तिपीठ के व्यवस्थापक आलोक बिंदल बताते है कि अमरकण्टक आश्रम में महाभारत क़ालीन अश्वत्थामा कई बार दादाजी के पास आए थे और लोगों ने उसको देखा था।

इसके बाद बर्फ़ानी दादाजी देश के भिन्न भिन्न भागो में मंदिर स्थापित किए और उनको संतो को सौंप कर आगे बढ़ जाते थे।

उनके कुछ शिष्यों ने बताया कि दादाजी जब कार में बैठते थे तो कार बिना रुके 14-14 घंटे चलती रहती थी और कही तेल ख़त्म हो गया तो वो नदी का पानी डालने को कहते और कार पानी से चल जाती थी इसकी पुष्टि करने के लिए हमने बर्फ़ानी दादाजी के लम्बे समय तक ड्राइवर रहे सोनी से बात की।

इसके बाद दादाजी भगवान शिव के अदेशानुसार मेहदीपुर बालाजी में हनुमान जी की साधना हेतु पहुँचे यहाँ दादाजी ने हनुमान जी की बिना कुछ खाए पिए कठोर साधना की। लोग कहते है कि एक अनजान बालक उनके लिए कमंडल में पानी प्रतिदिन लेकर आता था बाद में उसी बालक के रूप में हनुमान जी ने दर्शन दिए और साधना से प्रसन्न होकर हमेशा साथ रहने का बचन दिया। इसके साथ ही हनुमान जी ने मेहदीपुर बालाजी में आश्रम बनाने को कहाँ।

गाँधीनगर के पूर्व सांसद विजय पटेल कहते है कि हमने दादाजी के उस रूप के दर्शन किए है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता अब सारा जीवन उन्ही की सेवा के लिए है।

मेहदीपुर बालाजी ज़िला करौली , राजस्थान के आश्रम की आधारशिला 2007 में रखी गयी और आश्रम 2012 में बनकर तैयार हो गया आश्रम में सर्वप्रथम 11 मुखी हनुमान जी का मदिर बना और शनिदेव एवं काल भैरव के मंदिर बने।



 गुजरात उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं वर्तमान में गुजरात मानवधिकर आयोग के अध्यक्ष जस्टिस रवि त्रिपाठी कहते है कि वो आज जो कुछ भी है उनके आशीर्वाद से ही है उनके जीवन में सैकड़ों चमत्कार हुए।

ऐसा ही कुछ रिटायर्ड सचिव भारत सरकार राजीव गुप्ता  आईएएस ने उनको सक्षत ब्रह्म का रूप बताया.

जब हम दादाजी के बारे में पता कर रहे थे तब लखनऊ में हमें राजीव मिश्रा पूर्व महाप्रबंधक रेलवे मिले उन्होंने हमें बताया कि उन्हें आज भी पूर्ण आभास होता है दादाजी उनके साथ है और वो अपनी उपस्थिति दिखाते है।

बर्फ़ानी दादाजी के बारे में कहाँ जाता है की हर मंगलवार और शनिवार हनुमान जी साक्षात आते थे और दादाजी से उनका वार्तालाप होता लोगों ने सुना है। उनके भक्तों का कहना है की दादाजी बैठे बैठे अपने सूक्ष्म शरीर से कही भी विचरण कर सकते थे।




बर्फ़ानी दादाजी ने बालाजी में श्री राममंदिर का भूमि पूजन 5 अगस्त 2020 को रखी उसी दिन श्रीराम मंदिर अयोध्या का भूमि पूजन प्रधानमंत्री मोदी ने किया। 23 दिसंबर 2020 को अहमदाबाद में दादाजी ने शरीर त्याग दिया। राजस्थान के मेहदीपुर बालाजी धाम आश्रम में उनकी समाधी बनाई गयी। लोगों का कहना है की उनकी समाधी पर जो भी कोई सच्चे मन से कुछ माँगता है दादाजी उसकी मुराद पूरी करते है और आज भी कभी कभी भोग लगाने आते है।



फ़्रान्स के रहने वाले विमल दे ने उन पर एक किताब भी लिखी है “महातीर्थ के अंतिम यात्री” जिसमें वो बताते है जब वो 1953 में जब 16 साल के थे घर से भागकर कलकत्ता और फिर मानसरोवर चले गए थे जब वे कैलास मानसरोवर में थे तब दो बार एक सन्यासी ने उनकी प्राणो की रक्षा की किताब में उन्होंने “कैलास बाबा” लिखा है । जब 2009 में विमल दे घूमते घूमते अमरकण्टक पहुँचे वहाँ उन्होंने बर्फ़ानी दादाजी को देखा तो तुरंत ही पहचान लिया कि वो तो कैलास बाबा है

बर्फ़ानी दादाजी बहुत ही शांत, मीडिया से दूर एकांत में रहना पसंद करते थे। वो लगातार घंटो एक ही मुद्रा में कुर्सी पर बिना पलक झपकए बैठे रहते थे और लोग बस घंटो उनका चेहरा ही बिना खाए पिए निहारा करते थे। भक्तों का मन वहाँ से हटने को नहीं करता था।

दादाजी के पास बड़े बड़े राजनेता, अफ़सर उद्योगपति आते थे परंतु वो सब के साथ सामान्य व्यवहार करते थे।

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