नीतीश के लिए दरवाजा बंद' कहना भाजपा ने क्यों छोड़ा ?
बिहार की राजनीति में एक बार फिर एकसाथ कई अटकलें लगनी शुरूचुकी है। जदयू पर भाजपा के नरम रुख और आईएनडीआईए गठबंधन में खींचतान के बीच नीतीश कुमार के बयान ने सियासी हवा का रुख मोड़ दिया है। नीतीश कुमार को उम्मीद थी कि विपक्षी दलों के महागठबंधन आईएनडीआईए का संयोजक बनाया जाएगा। लेकिन अभी तक इस पर फैसला नहीं हुआ है। यह कई समीकरणों की ओर इशारा कर रहा है। इधर, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के हमले सधे स्वर में धीमे हुए हैं। इन ताजा हालात के सियासी गलियारों में कई मायने निकाले जा रहे हैं।
बिहार की राजनीति से जुड़े जानकार नीतीश कुमार की पाला बदलने की छवि से अच्छी तरह वाकिफ हैं। उन्होंने दो साल गठबंधन में रहने के बाद 9 अगस्त 2022 को एनडीए (NDA) का दामन छोड़कर लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद से हाथ मिला लिया था। इसके बाद ही बिहार में जदयू-राजद की सरकार बनी।
राजग से गठबंधन तोड़ने के बाद से अब तक भाजपा नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह करीब पांच बार बिहार का दौरा कर चुके हैं। इन दौरों में उन्होंने नीतीश कुमार पर जमकर निशाना भी साधा था। परंतु, अपने पिछले दौरे में वह नीतीश से ज्यादा लालू यादव पर हमलावर दिखे। उन्होंने बिहार में 'जंगलराज' को लेकर खूब हमला भी बोला।
नीतीश के प्रति बीजेपी का नरम रुख?
कहते हैं राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता है। यही वजह है कि भाजपा नेताओं का नीतीश कुमार के प्रति नरम रुख देखने को मिल रहा है। जानकारों का कहना है कि इसकी नींव पटना में हुई आईएनडीआईए की बैठक में नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक नहीं बनाए जाने पर पड़ी थी।
इसके बाद हुई दो बैठकों में भी नीतीश को संयोजक बनाए जाने पर कोई ठोस फैसला नहीं हुआ। इधर, बीते दिनों राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से जी-20 देशों के प्रतिनिधियों के लिए आयोजित रात्रि भोज में जब नितीश कुमार ने शिरकत किया तब रुख और बदलकर रख दिया।
इस भोज की एक तस्वीर सामने आई जिसमें नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नजर आए। यहीं से नरम रुख की शुरुआत होती दिखती है। इसके बाद ही अमित शाह का बिहार दौरा हुआ। शाह अपनी पिछली जनसभाओं के मुकाबले इस बार नीतीश पर अधिक हमलावर नहीं दिखे।