विशेष सत्र में प्रस्तावित विधेयक के बाद क्या-क्या बदल जाएगा ?
विशेष सत्र में प्रस्तावित विधेयक के बाद क्या-क्या बदल जाएगा ?
सरकार ने संसद के विशेष सत्र की पुरी तैयारी कर चुकिं है। इसमें चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़ा विधेयक भी पेश किया जाएगा। ये विधेयक पारित होने के बाद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय कमेटी करेगी। इसमें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक नामित कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। वहीं कैबिनेट मंत्री का नाम प्रधानमंत्री तय करेंगे। इस बिल पर राज्यसभा में 10 अगस्त 2023 को चर्चा हुई थी।
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर क्यों उठ थे सवाल।
साल 2018 में चुनाव आयोग के कामकाज में पारदर्शिता को लेकर कई याचिकाएं दायर हुईं थीं। जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील अनूप बरनवाल, सुप्रीम कोर्ट के वकील और BJP नेता अश्विनी उपाध्याय और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR ने कहा था कि चुनाव आयुक्त के लिए फिलहाल अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 324(2) के अनुसार, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। चूंकि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं। ऐसे में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पूरी तरह से सरकार का फैसला होता है। यह सत्ता में बैठी पार्टियों को मौका देता है कि वह अपने वफादार को इस पद पर नियुक्त कर सकें। दुर्भाग्य से यह धारणा बन रही है कि चुनाव आयोग सत्ता में मौजूद सरकार के प्रति उदार है। आयोग चुनाव प्रचार के दौरान सत्ताधारी सरकार के सदस्यों के खिलाफ आई शिकायतों के प्रति उतनी सख्ती नहीं दिखाता जितनी विपक्ष के खिलाफ दिखाता है, यानी यहां पर उसके नियम बदल जाते हैं। याचिकाकर्ताओं द्नारा मांग की गई थी कि मुख्य चुनाव आयुक्त यानी CEC और चुनाव आयुक्त यानी EC की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसा सिस्टम बनी रहे। सुप्रीम कोर्ट ने इसे 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था।
चुनाव आयोग को स्वतंत्र रहना जरूरी- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार शामिल थे। जस्टिस केएम जोसेफ इस बेंच की अध्यक्षता कर रहे थे। बेंच ने 2 मार्च 2023 को कहा था संसद इस पर कानून बनाए। जब तक कानून नहीं बन जाता तब तक PM, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का पैनल इनकी नियुक्ति करेगा। अच्छे लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया की स्पष्टता बनाए रखना बेहद जरूरी है। नहीं तो इसके अच्छे रिजल्ट नहीं होंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त की सीधी नियुक्ति गलत है। वोट की ताकत सबसे उपर है। इससे मजबूत पार्टियां भी सत्ता गंवा सकती हैं। इसलिए चुनाव आयोग का स्वतंत्र होना जरूरी है।’
क्या है विशेष सत्र में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा विधेयक ?
विशेष सत्र के दौरान ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, शर्तें और पद अवधि) बिल, 2023' संसद में पेश किया जाएगा। चुनाव आयुक्त के पद पर उम्मीदवारों को चुनने के लिए एक सर्च कमेटी होगी। कमेटी में कैबिनेट सचिव और दो सचिव रैंक के अधिकारी होंगे। ये 5 लोगों के नाम सुझाएंगे। ये नाम आगे सिलेक्शन कमेटी को भेजे जाएंगे। सिलेक्शन कमेटी की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे। इसमें विपक्ष के नेता के साथ एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। कैबिनेट मंत्री का चुनाव प्रधानमंत्री करेंगे। सिलेक्शन कमेटी में अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल नहीं होंगे। सिलेक्शन कमेटी, सर्च कमेटी की ओर से दिए गए नामों के अलावा दूसरे नाम पर विचार कर सकती है। ये अभी साफ नहीं है कि सिलेक्शन कमेटी चुनाव आयुक्तों को बहुमत के आधार पर या सर्वसम्मति से चुनेगी। बिल के क्लॉज 8(1) में सिर्फ इतना लिखा है कि सिलेक्शन कमेटी आयुक्तों को चुनने के लिए पारदर्शी तरीके से अपनी प्रक्रिया अपनाएगी। केंद्र सरकार इस बिल के जरिए मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा शर्तें) कानून, 1991 को खत्म कर दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त और दूसरे चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 साल का होगा या उनकी उम्र 65 साल पूरी होने तक, जो भी पहले हो। चुनाव आयुक्त या मुख्य चुनाव आयुक्त की दोबारा नियुक्ति नहीं हो पाएगी। केंद्र ने नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वे CJI को इसके सदस्यों में से एक बनाते हुए कॉलेजियम जैसे सिस्टम का विरोध करते हैं। केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि एक धारणा कि केवल न्यायपालिका की उपस्थिति से ही स्वतंत्रता और निष्पक्षता हासिल की जा सकेगी, यह संविधान की गलत व्याख्या है। यानी सरकार शुरू से ही चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया में CJI को शामिल करने के खिलाफ थी।
विपक्ष चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़े बिल का विरोध क्यों कर रहा है?
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित अन्य विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया है। विपक्षी दलों ने कहा- सरकार सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आदेश के खिलाफ बिल लाकर उसे कमजोर कर रही है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा चुनाव आयोग को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का जबरदस्त प्रयास बतायायह एक असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित विधेयक है। हम हर मंच पर इसका विरोध करेंगे। दिल्ली के CM और आप नेता अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट में कहा कि, 'प्रधानमंत्री जी देश के सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते। उनका संदेश साफ है कि सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश उन्हें पसंद नहीं आएगा, वो संसद में कानून लाकर उसे पलट देंगे। अगर PM खुलेआम सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते तो ये बेहद खतरनाक स्थिति है।'