न हाथ न चरखा, इस नए सिंबल पर इंदिरा गांधी ने लड़ा था चुनाव; आजाद भारत में पहली बार टूटी एक देश एक चुनाव की प्रथा
यह पहला मध्यावधि चुनाव था। 1951-1952 में स्वतंत्र भारत में पहली बार एकसाथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए गए। यह प्रथा 1960 के अंत तक जारी रही। चुनाव की तारीखों को एक साल के लिए आगे बढ़ाने की वजह से राष्ट्रीय व राज्य अनुसूचियो को अलग कर दिया क्योंकि कई विधानसभाओं का कार्यकाल अभी समाप्त नहीं हुआ था।
आजाद भारत के पांचवे आम चुनाव ने देश में चुनावी प्रक्रिया की रूप-रेखा बदल दी। लोकसभा चुनाव 1971 में इंदिरा गांधी की राजनीतिक शक्ति को देश ने देखा था। जब इंदिरा गांध की नेतृत्व वाली कांग्रेस ने लोकसभा की 545 सीटों में 352 सीटें जीतीं थीं। वहीं, कांग्रेस (ओ) को 16 सीटें मिली थी।
दो भागों में बंटी कांग्रेस
इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी दो भागों में बंट गई थी। सिंडिंकेट ने इंदिरा गांधी को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इंदिरा ने भी कांग्रेस के बुजु्र्ग नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कांग्रेस (आई) के नाम चुनाव लड़ा।
यह पहला मध्यावधि चुनाव था। 1951-1952 में स्वतंत्र भारत में पहली बार एकसाथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए गए। यह प्रथा 1960 के अंत तक जारी रही। चुनाव की तारीखों को एक साल के लिए आगे बढ़ाने की वजह से राष्ट्रीय व राज्य अनुसूचियो को अलग कर दिया, क्योंकि कई विधानसभाओं का कार्यकाल अभी समाप्त नहीं हुआ था।
इस चुनाव को लेकर कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
1-10 मार्च के बीच हुआ चुनाव
15,12,96,749 लोगों ने किया मतदान (55.2 प्रतिशत)
30 लाख कम था यह आंकड़ा 1967 के लोकसभा चुनाव से
2,784 उम्मीदवार मैदान में थे 518 सीटों के लिए चुनाव में
बदले चिह्न से लड़ा इंदिरा ने लड़ा चुनाव
यह पहला चुनाव था, जब आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस पार्टी (कांग्रेस आर और कांग्रेस ओ) दो भागों में बंटी थी। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली पार्टी का चुनाव चिन्ह गाय का दूध पीता बछड़ा था। कांग्रेस ओ का चुनाव चिन्ह चरखा चला रही महिला था।