सोनिया के राज्यसभा जाने के बाद उत्तर प्रदेश में नेहरू-गांधी परिवार की सियासी विरासत का दारोमदार अब चौथी पीढ़ी पर

Update: 2024-02-15 07:18 GMT

सोनिया गांधी के राजस्थान से राज्यसभा का नामांकन भरने के साथ ही उत्तर प्रदेश की सक्रिय चुनावी राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार का सफर अब विराम के पड़ाव की ओर बढ़ गया है। भाजपा की सियासत में सक्रिय मेनका गांधी अगर अगला चुनाव लड़ेंगी तो परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व बना रहेगा अन्यथा गांधी परिवार की प्रासंगिकता बनाए रखने का पूरा दारोमदार चौथी पीढ़ी के नेताओं पर होगा।

सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के राजस्थान से राज्यसभा का नामांकन भरने के साथ ही उत्तर प्रदेश की सक्रिय चुनावी राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार का सफर अब विराम के पड़ाव की ओर बढ़ गया है। भाजपा की सियासत में सक्रिय मेनका गांधी (Maneka Gandhi) अगर अगला चुनाव लड़ेंगी तो परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व बना रहेगा अन्यथा उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस व गांधी परिवार की प्रासंगिकता बनाए रखने का पूरा दारोमदार चौथी पीढ़ी के नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर होगा। 

दो दशक से रायबरेली का प्रतिनिधित्व कर रहीं सोनिया गांधी के राज्यसभा (Rajya Sabha) में जाने के बाद अब 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी जगह उनकी पुत्री कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) के इस सीट से चुनाव लड़ने की संभावनाएं जताई जा रही है। गांधी परिवार के संसदीय सफर का एक दिलचस्प पहलु यह भी है कि सोनिया गांधी ने जहां अपनी राजनीतिक सक्रियता के अंतिम दौर में राज्यसभा जाने का विकल्प चुना है, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के संसदीय कैरियर का आगाज राज्यसभा सदस्य तौर पर हुआ था।

ढाई दशक से UP की नुमाइंदगी कर रहीं सोनिया

कांग्रेस को संक्रमण के दौर से बाहर निकालने के लिए 1999 में अमेठी से लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) लड़कर सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने के बाद से सोनिया गांधी बीते ढाई दशक से लगातार लोकसभा में उत्तर प्रदेश की नुमाइंदगी कर रही हैं। 2014 में शुरू हुए भाजपा के वर्चस्व के दौर में भी रायबरेली ही सूबे की एकमात्र सीट है जहां कांग्रेस का सूरज अभी डूबा नहीं है। 

रायबरेली से किस्मत आजमा सकती हैं प्रियंका

2004 में राहुल गांधी को अमेठी की विरासत सौंप राय बरेली को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाने वाली सोनिया गांधी पिछले 20 साल से यहां से सांसद हैं। इस लिहाज से राज्यसभा जाने का विकल्प चुनने का फैसला करना सोनिया गांधी के लिए भी इतना सहज नहीं रहा होगा और तभी प्रबल संभावनाएं जताई जा रही हैं कि प्रियंका अगले चुनाव में रायबरेली में उनकी राजनीति विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उतरेंगी। इसी तरह राहुल गांधी के भी पिछली हार को पीछे छोड़ अमेठी से चुनाव लड़ने की संभावनाएं भी कायम हैं। राहुल-प्रियंका से लेकर भाजपा की सियासत में सक्रिय वरुण गांधी नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी की नुमाइंदगी करते हैं। 

पंडित नेहरू ने फूलपुर सीट का किया था प्रतिनिधित्व

उत्तर प्रदेश तीन दशक पहले तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता था और इसका काफी श्रेय सूबे में नेहरू-गांधी परिवार की लोकप्रियता को दिया जाता था। इसकी बुनियाद स्वाभाविक रूप से देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रखी और 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर 1962 के तीसरे आम चुनाव तक उत्तर प्रदेश के फूलपुर लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया।

1964 में नेहरू के निधन के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने फूलपुर का कुछ समय के लिए प्रतिनिधित्व किया। देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी ने 1967 के आम चुनाव में रायबरेली को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाते हुए पहली बार यहां से लोकसभा पहुंची। हालांकि, इससे पूर्व ही वह संसदीय जीवन की शुरूआत 1964 में राज्यसभा से कर चुकी थीं।

पंडित नेहरू के निधन के बाद पीएम बने लाल बहादुर शास्त्री ने इंदिरा गांधी को अपनी कैबिनेट में सूचना व प्रसारण मंत्री बनाया और वे राज्यसभा में आयीं। हालांकि, 1977 में कांग्रेस विरोध की लहर में हुए आम चुनाव में उत्तर प्रदेश से गांधी परिवार के प्रतिनिधित्व पर संक्षिप्त ब्रेक जरूर लगा, लेकिन 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी के साथ नेहरू-गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी के तौर पर संजय गांधी का अमेठी से लोकसभा में पर्दापण हुआ। दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में संजय गांधी के निधन के बाद उनके बड़े भाई राजीव गांधी ने अपनी जिंदगी के अंतिम तक अमेठी की विरासत संभाली।

1991-99 तक संसद में गांधी परिवार का नहीं था कोई सदस्य

राजीव के निधन के बाद उत्तर प्रदेश में 1991-99 तक नेहरू-इंदिरा विरासत का कोई सदस्य कांग्रेस की ओर से संसद में नहीं रहा। हालांकि, कांग्रेस के विरोध में बनी जनता दल से 1989 में पहली बार लोकसभा में पहुंची मेनका गांधी 1991 का चुनाव हार गईं, मगर 1996 का चुनाव जीत गईं और तब से वह लगातार संसद में हैं और जनता दल छोड़ने के बाद 1998 से वे भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। 

नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी की सियासी पारी की शुरुआत 2004 में राहुल गांधी ने की तो भाजपा ने भी वरुण गांधी को आगे किया। रायबरेली से प्रियंका गांधी चुनाव मैदान में उतरती हैं तो वह गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी की चुनावी राजनीति में कदम रखने वाली तीसरी शख्सियत होंगी। 


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